Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

November 24, 2010

जाड़ों की बारिश .

न कोयल कूके न नाचे मोर 
फ़िर क्यों घिरी घटा घनघोर ?
गुलदाउदी कैसे खिल पाए ,
जब रोज़ बादल धूप चुराएं ?
बिन दूल्हे की यह बारात
जाड़ों में बारिश की सौगात.
रोये किसान और खलिहान,
हर क्यारी,फुलवारी रोये .
रो के बिट्टू स्कूल जाये
और बारिश  में खेल न पाए .
सीले-गीले ये सब रस्ते
धूप में कैसे खिल कर हँसते !
यूं ही नहीं सब खुन्नस खाएं.
खिलता सूरज मिल न पाए,
जैसे   पीनी पड़े ठंडी चाय
और गर्म जलेबी की याद सताए .

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